प्यार बुढ़ापे का - Poetry In Hindi -Storykunj
बड़ा ही सच्चा , बड़ा ही निर्मल, होता है प्यार बुढापे का ।
ना तन की भूख , ना आकर्षण, श्रृंगार भी कहाँ, कहाँ अब दर्पण।
मन से भी, और तन से भी, बस रहता एक भाव समपर्ण का।
सारे जग में, सबसे प्यारा, सब से न्यारा, रहता प्यार बुढ़ापे का।
अब दिन कटे ना चिक- चिक के बिन, रात कटे ना बातों बिन ।
करबट हो विपरीत दिशा में, जान बूझ कर करें ना बात।
" उठो, चाय पिओगे?" कह कर , सुलह सबेरे ही हो जाती।
रूठने और मनाने में ही , छुपा है प्यार बुढ़ापे का।
कभी कहीं जब बाहर जाते, नियत समय पर वे लौट ना पाते।
उन में ही प्राण अटक जाते , जब तक सकुशल घर वापस ना आते।
तन भी तुम , मन भी तुम, जीवन का हर
सुख हो तुम। कहता प्यार बुढ़ापे का।
जग में भला कहाँ है मिलता , ज्यूं होता
प्यार बुढ़ापे का।
बेटा - बेटी सक्षम हो कर, जब नीड छोड उड़ जाते हैं।
सूने - सूने से पूरे घर में, दोनों निपट अकेले ही रह जाते है।
किसी अनहोनी की आशंका से, वे मन ही मन घबराते हैं।
तब इक दूजे की बैसाखी बनके , बे अपना फर्ज निभाते है।
कितना सच्चा , कितना कोमल, होता है प्यार बुढ़ापे का।
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