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नेत्रहीन ने की पहचान - Moral Story In Hindi - Storykunj


लघु कथा 

एक बार एक राजा को शिकार करने की इच्छा हुई । शिकार पर जाते समय राजा ने अपने कुछ सैनिकों और मंत्रियों को साथ में लिया और फिर निकल पड़े जंगल की ओर।  जंगल काफी घना था।  शिकार खोजते - खोजते काफी देर हो चुकी थी। बहुत भटकने के बाद एक शिकार पर उनकी नजर पड़ी।  राजा अपने शिकार का पीछा करते - करते  काफी दूर निकल गए। उनके साथी सब पीछे कहीं छूट गए। अब उन्होंने अपने साथियों की तलाश में सारा जंगल छान मारा,  पर एक भी साथी नहीं मिला। उन्हें निराशा ही हाथ लगी। रात होने को आई परंतु उन्हें अपने साथी नहीं मिले। 
 
अचानक कुछ दूरी पर उनकी नजर वृक्ष की छांव में बैठे एक वृद्ध पर पड़ी।  वृद्ध  के नजदीक जाने पर पता चला कि वह नेत्रहीन है। 

 यह देखकर राजा कुछ निराश हुए,  फिर कुछ सोच- विचार कर उन्होंने उस वृद्ध से पूछा, 'सूर सागर जी ! क्या आप बता सकते हैं कि कोई राहगीर अभी-अभी यहां से निकला है?'

उस वृद्ध ने कहा, 'महाराज,  सबसे पहले तो आप का सैनिक यहां से निकला था, उसके पीछे - पीछे आप का सेनानायक और उसके बाद आप के मंत्री अभी - अभी यहां से गए हैं।'  एक नेत्रहीन वृद्ध से ऐसा उत्तर पाकर राजा बहुत हैरान रह गए। उन्होंने जिज्ञासा भरे स्वर में पूछा,  सूरसागर जी ! आपको तो आंखों से दिखता भी नहीं है, फिर आपने मुझे कैसे पहचाना? आप यह भी बता रहे हैं कि मेरे सैनिक, सेनानायक और मंत्री यहां से अभी - अभी निकले हैं। '
 
वृद्ध ने जवाब दिया,  'महाराज ! मैंने आपके सैनिक,  सेनानायक और मंत्री की बातें सुनी और उसी से अनुमान लगा लिया। 

 सबसे पहले आपके सैनिक ने आकर पूछा, 'क्यों रे अंधे ! यहां से अभी - अभी कोई निकला है क्या?'

उसके बाद सेनानायक ने आकर मुझसे पूछा,  'सूरजी ! यहां से अभी - अभी कोई गुजरा है? '

 सेनानायक के पीछे थोड़ी ही देर बाद आप के मंत्री जी ने आकर पूछा,  'सूरदास जी ! यहां से अभी - अभी कोई निकला है ? '

 अंत में आपने स्वयं आकर कहा, 'सूरसागर जी ! क्या यहां से कोई राहगीर अभी - अभी निकला है? '
महाराज !  वाणी  ऐसी चीज है जो व्यक्ति की पद- प्रतिष्ठा,  बड़प्पन और व्यक्तित्व की पहचान अपने आप ही करा देती है। 
वृद्ध का जवाब पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। 

Moral- इस कहानी से यह साफ पता चलता है कि दूसरों के सामने हमारे बोलने का अंदाज ही ही हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व की पहचान  है । 

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