इतनी चतुराई !! - Interesting Story In Hindi - Storykunj
एक बार चौधरी साहब नारियल खरीदने गए । दुकानदार ने जब नारियल के पैसे बताए तो चौधरी साहब को महंगे लगे । वे दुकानदार से बोले जहां से तुम लाते हो वहां इतने का थोड़े मिलता है। इस पर दुकानदार ने कहा साहब सस्ता चाहिए, तो थोक की दुकान से ले लो। चौधरी साहब ने सोचा बात तो सही है बे थोक रेट की दुकान पर पहुंचे। और वहां पैसे पूछे। जब उन्होंने पैसे बताए, तो चौधरी साहब को वे भी ज्यादा लगे, और बोले तुम लोग मनचाहा रेट लगाते हो, जहां से तुम लाते हो, वहां इतने का थोड़े ही मिलता है।
इस पर दुकानदार चिढ़कर बोला "हां जी आप ठीक कहते हो, हम तो नारियल के पेड़ से यह नारियल लाते हैं, वहां बिल्कुल मुफ्त में मिलते हैं, आप भी वही से जाकर ले लो। "
फिर क्या था चौधरी साहब को यह बात जच गई। जब मुफ्त में चीज मिल रही हो तो खर्चा क्यों करना। वह नारियल का पेड़ ढूंढने के लिए चल दिए। आखिरकार एक नारियल का पेड़ मिल भी गया। जैसे तैसे इतने लंबे और सीधे पेड़ पर चौधरी साहब चढ़ तो गए। उन्होंने नारियल तोड़ भी लिया। मगर उतर नहीं पाए। अब वे नारियल के पेड़ पर टंगे हुए घबरा रहे थे कि कैसे उतरे ??
जब कोई समस्या आती है और हमें अपनी समस्या का समाधान नहीं मिलता तब हम अंत में ईश्वर से प्रार्थना करते हैं चौधरी साहब ने भी मन ही मन भगवान को याद किया । और मनौती मानी कि अगर मैं पेड़ से नीचे उतर जाऊं तो मैं इक्यावन ब्राह्मणों को भोजन खिलाऊंगा।
कहते हैं मन्नत मांगने से इंसान का मनोवैज्ञानिक मनोबल मजबूत होता है इसी प्रकार मन्नत से उनके मन में भी मनोवैज्ञानिक मनोबल आ गया। और वह आंखें बंद करके धीरे-धीरे नीचे उतरने की कोशिश करने लगे। तो आधी दूर तक नीचे उतर आए, आंख खोल कर देखा तो पछताने लगे कि मैंने बेकार ही इक्यावन ब्राह्मणों के लिए बोल दिया। आधी दूर तो मैं उतर ही आया। अब उन्होंने कहा कि यदि मैं नीचे उतर जाऊं तो इक्किस ब्राह्मणों को भोजन कराऊंगा।
थोड़ा - थोड़ा करके उन्होंने नीचे उतरना शुरू किया तो कुछ और नीचे उतर आए। अब सिर्फ चौथाई हिस्सा ही रह गया था। उन्होंने देखा तो बोले प्रभु अब तो थोड़ा ही रह गया है मैं ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन करा दूंगा।
उसी तरह से इंच- इंच करके थोड़ा और नीचे आ गए। तो उन्होंने कहा कि अब ग्यारह ना सही लेकिन पाच ब्राह्मणों को तो मैं खिला ही दूंगा। फिर थोड़ा और सरक कर नीचे आ गए। तो दो फीट के करीब ही रह गया होगा । अब वह नीचे कूदे और बोले कि पाच नहीं तो एक ब्राह्मण को तो भोजन मैं करा ही दूंगा।
अब वे एक ऐसे ब्राह्मण की खोज में निकले जो कम खाता हो। आखिरकार उन्हें एक कम खुराक वाला ब्राह्मण मिल ही गया।
चौधरी साहब उसके घर पहुंचे, और उनको प्रणाम किया, और कहा मुझे एक ब्राह्मण को भोजन कराना है। इसलिए मैं आपको न्योता देने आया हूं। ब्राह्मण देवता ने कहा ठीक है। मुझे आपका न्योता मंजूर है।
जाते - जाते चौधरी साहब ने एक ऐसी बात पूछ ली जिसके लिए ब्राह्मण देवता तैयार नहीं थे। चौधरी जी ने पूछा ! आप कितना खा लेते हैं ?
यह प्रश्न सुनते ही ब्राह्मण ने चौधरी साहब के मन की बातों को भाप लिया वह समझ गए कि यह बहुत कंजूस हैं। चौधरी की बातों को समझ कर उन्होंने भी अपनी रणनीति बना ली। ब्राह्मण भी खूब चालू चतुर घंटाल थे। खासते हुए बोले ! मुझे तला - भुना और मिर्च - मसाला खाना मना है अतः मैं मुश्किल से बहुत हल्की - हल्की दो पूरियां ही खा पाता हूं बस।
चौधरी साहब प्रसन्न हो गए। और उन्हें लगा कि बस यही ब्राह्मण उचित है। उन्होंने ब्राह्मण से कहा देखिए पंडित जी मैं 8:00 बजे ड्यूटी पर चला जाता हूं। अत: आप उससे पहले ही मेरे घर भोजन करने आ जाइए ।
पंडित जी ने कहा ठीक है। चौधरी साहब प्रसन्न मन से न्योता देकर अपने घर आ गए।
अगले दिन सुबह भोजन की सब तैयारी हो गई। चौधरी जी पंडित जी का इंतजार करते रहे। मगर पंडित जी नहीं आए । आखिरकार थक हार कर चौधरी साहब अपनी ड्यूटी को चले गए। और चौधराइन से कह गए देखो ! मैं जाता हूं मेरे पीछे से पंडित जी आए तो उन्हें भोजन करा देना ।
इक्किस रुपए दक्षिणा मैं दे देना।
दोपहर में पंडित जी आए और बोले ! स्वास्थ्य सही नहीं है। क्या करें। निमंत्रण स्वीकार कर लिया था। इसलिए भोजन करने चला आया।
चौधराइन ने पंडित जी के हाथ- पैर धूलवाए। पंडित जी रोने लगे।
चौधराइन ने पूछा ! क्या हुआ पंडित जी?
पंडित जी बोले ! क्या बताएं, आज के दिन तुम्हारी सास का ध्यान हो आया। वह जब भी मेरा निमंत्रण करती थी। तो हाथ - पैर धूलवाने के समय मुझे एक अशर्फी भी दीया करती थी।
उनकी यह सुनकर चौधराइन भावुक हो गई। और बोली ! तो क्या हुआ पंडित जी, सासू जी नहीं रही तो क्या, मैं तो हूं ही।
ऐसा कहकर उन्होंने पंडित जी को एक अशर्फी लाकर दे दी।
और फिर पंडित जी को आसन डालकर भोजन करने के लिए बैठाया। भोजन कर चुकने के बाद पंडित जी फिर फूट-फूट कर रोने लगे।
चौधराइन ने पूछा ! अब क्या हुआ पंडित जी?
पंडित जी बोले ! क्या बताऊं चौधराइन जी, आपकी लक्ष्मी स्वरूपा सासू मां मुझे ग्यारह अशरफिया भोजन करने के बाद भी दिया करती थी। और उसके बाद आटा, चावल आदि सीधा अनाज पुण्य दान करती थी।
चौधराइन बोली ! बस पंडित जी, आप चिंता मत कीजिए। जो भी मेरी सासू मां के सामने होता रहा है, उसमें कोई बदलाव नहीं होगा। आटा, चावल, तेल, घी आदि सब समान चौधराइन ने बांध दिया। पंडित जी ने खुशी-खुशी अपने घर को प्रस्थान किया। रात में चौधरी साहब ड्यूटी से वापस लौट कर आए तो पूछने लगे, पंडित जी भोजन कर गए थे?
चौधराइन बोली "हां मैंने पूरे विधि - विधान से भोजन करा दिया। लेकिन वह बार-बार रो रहे थे।"
बार-बार क्यों रो रहे थे ? चौधरी जी ने पूछा।
सासू मां की उन्हें बार-बार याद आ जाती थी। लेकिन मैंने भी कोई कमी नहीं छोड़ी। मैंने कहा सासूजी नहीं है। तो क्या हुआ, मैं तो हूं ही। मैंने उनकी सब दान- दक्षिणा पूरी कर दी।
अब चौधरी साहब बुरी तरह चौके "कैसी दान -दक्षिणा? "
चौधराइन ने पूरा हाल बताया, सुनते ही चौधरी साहब का खून खोलने लगा। और वे लाठी लेकर पंडित जी के घर की तरफ दौड़े।
चौधरी साहब के घर से इतना सामान लाकर पंडित जी को भी खटका लगा हुआ था। यह बात तो वह भी जानते थे कि चौधरी साहब जब आएंगे तो गजब हो जाएगा। इसलिए उन्होंने पहले से ही बचाव का सारा इंतजाम कर रखा था। उन्होंने पंडिताइन से कहा सुनो ! हमें झूठ मुठ का एक ड्रामा करना होगा जैसे ही चौधरी साहब आए। तुम फौरन मुझे यह सफेद कपड़ा उढ़ा देना। ऐसा कह कर उन्होंने एक सफेद कपड़ा निकाला। और आंगन के बीचो-बीच थोड़ा गाय के गोबर से लिपवा लिया। और तैयार होकर बैठ गए। शाम को जैसे ही दरवाजा खटका। पंडिताइन ने दरवाजे के होल से बाहर झांक कर देखा। चौधरी साहब लाठी लिए खड़े थे। उन्होंने दौड़कर पंडित जी को बताया।
पंडित जी जल्दी से सफेद कपड़ा ओढ़ कर आंगन में लेट गए। पंडिताइन ने पंडित जी को सिर से पांव तक अच्छी तरह कपड़ा ढक दिया...... दरवाजा खोल कर आई और धम्म से बैठ गई फिर विलाप करने लगी !!
अब उनका विलाप सुनकर चौधरी जी का तो कलेजा भीतर तक कांप गया। पंडिताइन क्यों रो रही है? आगे बढ़कर उन्होंने देखा कि पंडित जी कफन ओढ़े हुए आंगन में पड़े हुए हैं। और पंडिताइन रो रही है।
पंडित जी हम सब को छोड़ कर चले गए। अब हमारा क्या होगा। हमको भी साथ क्यों नहीं ले गए?
चौधरी साहब ने सहमते हुए पूछा, इनको क्या हुआ है?
पंडिताइन बोली ! अच्छे भले घर में बैठे थे। पता नहीं कहां का, कोई आदमी आया। और इनको अपने घर पर भोजन खिलाने ले गया। पता नहीं इनको वहां क्या खिला दिया। वहां से जब से लौटे हैं। तब से दे उल्टी, दे दस्त, दे उल्टी, दे...... और हमारे पंडित जी हमको छोड़कर चले गए....... कहकर फिर से दहाड़ मार- मार कर रोने लगी...... अब कहां से इनके कफन के लिए हम पैसे लाएंगे..... कुछ भी तो नहीं है घर में! कैसे इनको फूंक पाएंगे??
चौधरी साहब घबरा गए। और अपनी जेब से रुपए निकाले। पंडिताइन को देते हुए बोले! लो इन रुपयो से इनका दाह संस्कार कर देना। और बाकी का जो सामान होगा। वह मैं घर जाकर भिजवा दूंगा। ऐसा कहकर चौधरी साहब वहां से चले गए। और फिर बाद के क्रिया - कर्म के लिए ढेर सारा सामान भिजवाया।
पंडित जी का राशन पानी दो महीने तक चला और उसके बाद राशन पानी खत्म हो गया...... तो उन्होंने सोचा,
चल कर देखता हूं,
समय तो उनको पता ही था। चौधरी साहब 8:00 बजे अपनी ड्यूटी पर चले जाते थे। दो महीने तक पंडित जी ने दाढ़ी नहीं बनवाई थी। उनकी लंबी -लंबी दाढ़ी हो गई थी पंडित जी चौधरी साहब के घर पहुंचे।
चौधराइन उनको देखकर चकित रह गई। उन्होंने पूछा, पंडित जी आप तो मर गए थे?
पंडित जी ने कहा ! "हां लेकिन मैं स्वर्ग से ही तो सीधा यहां आ रहा हूं। "
पंडित जी भी बहुत चालू थे। उन्हें पता था कि चौधरी साहब की एक बेटी थी रोशनी नाम की। जो अब इस दुनिया में नहीं है
पंडित जी ने कहा ! मुझे वहां रोशनी मिली थी। जब उसे पता चला कि मैं यहां आता - जाता हूं तो वह मुझसे आकर कहने लगी कि पंडित जी मेरे घर चले जाना मेरी मां और पिता जी का हालचाल ले आना। उन्हें मेरी खबर दे देना। तभी मैं आपके यहां रोशनी का समाचार देने आया हूं।
यह सुनकर चौधराइन जी भावुक हो गई। और उनके पास आकर बैठ गई। और रोशनी का समय हाल समाचार पूछने लगी।
जी बोले क्या बताऊं, रोशनी बहुत कमजोर हो गई है वहां कोई बढ़िया इंतजाम नहीं है। फल, फ्रूट, मेवा, मिश्री खाने का इंतजाम नहीं है मुझे ही देखती हो मेरी कितनी बड़ी-बड़ी दाढ़ी हो गई है वहां कोई नाई थोड़े ही है।
तभी मैंने सोचा कोई बात नहीं रोशनी का काम भी कर दूंगा। और अपनी दाढ़ी भी बनवा लूंगा। अब मैं वापस जाने वाला हूं। रोशनी के लिए कुछ देना - वेना हो तो दे देना। मैं उसे जाकर दे दूंगा।
चौधराइन ने रोशनी के लिए बढ़िया बढ़िया व्यंजन और राशन सामग्री तांगा भर कर दे दी। पंडित जी चले गए। रात में जब चौधरी जी वापस आए तो चौधराइन ने उन्हें कुछ नहीं बताया।
और इस प्रकार चौधराइन का दिया हुआ राशन भी दो महीने तक चला।
उसके बाद एक दिन पंडित जी दोपहर को आकर चौधरी साहब के यहां उपस्थित हो गए।
चौधराइन पंडित जी को देखते ही खुश हो उठी और कहने लगी।
पंडित जी क्या हालचाल है?
पंडित जी बोले बहुत बढ़िया है।
बिटिया का हाल चाल पूछने पर बताया। आपकी बिटिया अब तंदुरुस्त हो गई है।
और अब तो चौधराइन बहुत खुश हो गई। पंडित जी बोले बिटिया ने और सामान मंगाया है।
चौधराइन दौड़- दौड़ कर सारा सामान का इंतजाम करने लगी। और खूब सारा राशन भरकर उनको दे दिया। और बोली बिटिया से कहना अम्मा उनको बहुत याद करती हैं।
पंडित जी बोले ! हां हां, क्यों नहीं, कह दूंगा, ऐसा बोलकर पंडित जी जल्दी से वहां से ओझल हो गए।
अचानक किसी काम से दोपहर में चौधरी साहब आ गए। उन्होंने देखा चौधराइन दरवाजे पर खड़ी थी। उन्होंने आश्चर्य से पूछा !
यहां क्यों खड़ी हो? क्या कोई आया था?
" हां स्वर्ग से पंडित जी आए थे। "
यह बात सुनकर चौधरी को जैसे करंट लगा और चिल्ला कर कहा तुम्हारा दिमाग घूम गया है पंडित ने कोई ऐसी- वैसी बात बता दी होगी कहीं वह तुमसे कुछ ठग तो नहीं ले गया।
चौधराइन बोली मैंने कुछ खास नहीं दिया। कपड़े, एक टोकरी भर के फल -फ्रूट, आटा, चावल, दाल, तेल सीधा राशन वगैरह दिया है।
चौधरी साहब अपनी अकल की अंधी चौधराइन पर बहुत क्रोधित हुए और बोले मरे हुए लोग भी कभी वापस आते हैं कुछ तो अपनी अकल से काम लिया होता।
फिर उन्होंने कुरेद- कुरेद कर सारी बात चौधराइन से पूछी। चौधराइन ने पिछली सब बातें बताइ।
चौधरी साहब मन ही मन क्रोधित होते हुए पंडित जी के घर की तरफ चले!! और पंडित जी के पास पहुंचकर उनसे हाथ जोड़कर माफी मांगी और कहा पंडित जी ! हमें क्षमा कर दो। दोबारा मैं कभी कम खुराक खाने वाला पंडित नहीं ढूंढुंगा!!
पंडित जी बोले ठीक है। लेकिन एक वादा करो। हर महीने मुझे दो बार भोजन कराओगे और एक सो एक रुपया दक्षिणा दोगे। अन्यथा मैं तो फिर निपट ही लूंगा।
चौधरी साहब ने तुरंत उनके चरण पकड़ लिया और कहा! नहीं मुझे माफ करो। मैं आपको महीने में दो बार दावत भी खिलाऊंगा और एक सो एक रुपया दे दूंगा। पंडित जी ने उनको मुस्कुराते हुए अभयदान दे दिया।
जाओ तुम चैन से रहो।
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