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नाकामयाबी से न हो निराश- Inspirational Story In Hindi - Storykunj


 हार के बाद जो जीत होती है। वह सबसे स्पेशल होती है।  यह कहानी उन स्टूडेंट के लिए प्रेरणा देने वाली खूबसूरत कहानी है जो फेल होने पर निराश हो जाते हैं। हार मानने के बाद फिर से उठ खड़े होना और खुद को साबित करना ही असल जीत है 
यह एक सच्ची कहानी है। 
 दिल्ली की चारु यादव की पिछली चार साल की जिंदगी बहुत उतार-चढ़ाव वाली रही।  इस वर्ष 2020 मैं स्कूल में टॉप करने वाली चारु कभी बार-बार फेल हो रही थी चारु की यह कहानी 9वीं -11वीं में फेल होने से लेकर 12वीं में 96% मार्क्स लाने की दास्तां है। 
 12वीं के रिजल्ट का दिन था।  चारु अपनी नानी के घर थी।  तभी भाई ने कहा 12वीं का रिजल्ट आ गया है।  चारु ने कंप्यूटर खोला वेबसाइट देखने लगी।  डर के मारे चारू के हाथ कांप रहे थे। इस बीच सीबीएसई की वेबसाइट डाउन हो गई।  वहां घर में पापा रिजल्ट देखने की कोशिश में जुटे थे।  और यहां नानी के घर पर स्वयं चारु। 
 तभी पापा ने फोन किया ! बेटा नंबर लिखो 95, 95, 96, 97, 98 और नंबर सुनकर चारू जोर - जोर से रोने लगी।  आसपास के लोग यह देखकर सोच में पड़ गए।  उन्हें क्या पता यह नंबर प्राप्त कर के चारु ने नाकामी के झटके को झटका दिया था। कामयाबी की क्या है खास कहानी आइए जानते हैं। 
 चारु 11वीं में फेल हो चुकी थी और उससे दो साल पहले भी 9वी में ऐसा ही धक्का लगा था। जबकि तीसरी कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक हर बार क्लास में थर्ड पोजिशन आई थी। 9वी में दिल्ली में बेहतरीन सरकारी स्कूलों में गिने जाने वाले राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय,  रोहिणी में चारु का एडमिशन हो गया था। एंट्रेंस देकर दाखिला पाने का रोमांच चारु के लिए नया- नया था। खुशी में चारू ने खुद को सातवें आसमान पर बैठा लिया था क्योंकि  जानने वालों और रिश्तेदारों के बच्चों ने भी यह एग्जाम दिया था मगर एंट्रेंस सिर्फ चारू का क्रैक हुआ था। इससे चारू में ओवरकॉन्फिडेंस आ गया और इस चक्कर में  9वी में पूरे साल वह मैथ पर ध्यान नहीं दे पाई। 
 फाइनल रिजल्ट में चारु मैथ में फेल थी। टीचर ने चारू और उसके पैरंट्स को बुलाकर कंपार्टमेंट का पेपर देने को कहा। उस दिन पहली बार पापा को रोते हुए देखा। उस दिन उसे लगा कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है। कंपार्टमेंट का पेपर भी दिया। लेकिन उसमें भी पास नहीं हुई। 
 जब 9वी का रिजल्ट लेकर घर आए तो पापा को दादा - दादी ने समझाया। फिर खुद को संभालते हुए पापा ने कहा की जो किताबे तुमने एक साइड में उठाकर रख दी थी उन्हें उठाओ और अपने कमरे में लगाओ और मन लगाकर पढ़ो। 
 चारू ने पापा के पास जाकर कहा 'पापा सॉरी !अब मैं कुछ करके दिखाऊंगी।'
 चारु को अब अपना नया साल संवारना था। अपनी सहेलियों को अपना सीनियर देखना और नए स्टूडेंट के साथ एक अनजान क्लास में जाने के लिए बहुत हिम्मत जुटाने पड़ी।  घर पर ही एक छोटी सी बिजली की दुकान चलाने वाले चारू के पापा ने चारू को मोटिवेट करने में कोई कमी नहीं रखी। मम्मी हाउसवाइफ हैं।  उन्होंने भी घर का छोटा-मोटा काम करवाना छोड़ दिया। ताकि वह पढ़ाई पर ध्यान दे सके।  रिश्तेदारों के सवालों के डर से मम्मी ने फंक्शन में भी जाना छोड़ दिया था। 
अब चारु के 9वी मैं 80 परसेंट नंबर आए मैथ का ग्रेड B2 हो चुका था। दसवीं में कोई दिक्कत नहीं हुई। 9 सीजीपीए स्कोर से पास हुई।  परिवार का भरोसा लौट चुका था। 11वीं में उसने मेडिकल स्ट्रीम ली।  मगर एक बार फिर उसका कॉन्फिडेंस डगमगा गया।  किताबों से इतना थक गई थी कि दिसंबर आते-आते पढ़ना ही छोड़ दिया।  मार्च में रिजल्ट आया क्लास टीचर ने पापा से रिजल्ट प्रिंसिपल ऑफिस में लेने के लिए कहा। कई सब्जेक्ट में फेल होने की वजह से प्रिंसिपल ने क्लास री-अपीयर करने के लिए कहा। उस दिन फिर उसने पापा को रोते हुए देखा । किसी ने खाना नहीं खाया। उस दिन उसे लगा मैंने अपने पेरेंट्स की गर्दन शर्म से झुका दी। 
 कुछ दिन बाद प्रिंसिपल ने ह्यूमैनिटी स्ट्रीम दिलाने का सुझाव दिया। 
साइंस से ह्यूमैनिटी स्ट्रीम? 
 चारु के लिए फैसला कठिन था। 





 पापा ने चारू को समझाया, मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी की जिंदगी हमारे समाज की बाकी लड़कियों जैसी हो कोई छोटा मोटा डिप्लोमा करा दो और शादी कर दो।  मैं चाहता हूं कि तुम पढ़ो। हर फील्ड खास है। और बारहवीं जिंदगी का जरूरी हिस्सा है अब चारू 11वीं की नई क्लास में थी मेडिकल स्ट्रीम छोड़कर पॉलिटिकल साइंस हिस्ट्री जियोग्राफी इंग्लिश हिंदी और फिजिकल एजुकेशन से फिर एक नए सेशन की शुरुआत की अब चारू मानती हैं कि क्लास के साथियों और उनके बीच का दो साल का गैप कहीं ना कहीं दिक्कत कर रहा था। वैसे सब बहुत अच्छे थे अपना पढ़ाई का टाइम टेबल साल भर फॉलो किया। क्लास टीचर के मोटिवेशन से सब्जेक्ट अच्छी लगने लगी।  और तब 84.6% नंबर लेकर क्लास में फर्स्ट आई। जब असेंबली में रिजल्ट सुनाया गया तो पापा की आंखें खुशी से भीगी थी। 





 चारु ने 12वीं में कम से कम 97% का टारगेट उसी दिन बना लिया था जिस दिन 11 वीं का रिजल्ट घर लाई थी। उसी दिन उसने अपना रिजल्ट,  टारगेट और टाइम टेबल दीवार पर चिपका दिया। अब खोने को कुछ नहीं था इसलिए डर नहीं था मुझे खोई हुई अपनी रिस्पेक्ट को वापस पाना था। उसने लगातार पढ़ाई करी। सभी सब्जेक्ट को दिलचस्पी लेते हुए पड़ा। सफलता का यह फंडा भी है। नोट्स भी बनाए। गलती की गुंजाइश न के बराबर थी। बाकी बच्चों को स्कोर करना था।  पर उसे खुद को साबित करना था। 96.2% के साथ चारु ने 12वीं मैं बड़ी कामयाबी हासिल की। 

 Inspiration - चारु की पिछले चार साल की जिंदगी प्रेरणा देती है कि नाकामयाबी से निराश नहीं होना चाहिए। हार मानने के बाद फिर से उठ खड़े होना और खुद को साबित करना ही असली जीत है। 

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