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स्वाभिमान और वात्सल्य - Moral Story In Hindi - Storykunj


माता-पिता चाहे कितने भी गरीब क्यों ना हो वह हमेशा अपने बच्चों के चेहरे पर खुशी देखना चाहते हैं।  उसके लिए उन्हें चाहे कितनी भी तकलीफों से क्यों ना गुजरना पड़े। 

  यह कहानी है एक गरीब पिता और उसकी लाडली बेटी की।  पिता के लिए उसकी बेटी परी होती है। वह अपनी बेटी को किस प्रकार खुशी देने की कोशिश करता है। यह कहानी उसी पर आधारित है। 

     शाम के लगभग सात बजे थे। अभिषेक यहां हमेशा की तरह होटल में चाय पीने के लिए पहुंचे   थे । वह हमेशा से साइड वाली टेबल पर ही बैठना पसंद करते हैं और वही चाय, समोसा का आर्डर करते हैं । 
 आज भी अभिषेक समोसे के साथ-साथ चाय की चुस्की ले रहे थे। 

 इतने में उन्होंने देखा कि एक आदमी अपनी  बेटी  के साथ होटल में आया। और वह सामने वाली टेबल पर बैठ गया। 

 उस आदमी के कपड़ों को देखकर अंदाजा लग रहा था। कि वह कोई मजदूर है क्योंकि उसके कपड़े काफी मेले थे।  उसकी शर्ट फटी हुई थी। पेंट भी काफी खराब था।  रास्ते पर खुदाई का काम करने वाला मजदूर जैसा लग रहा था। 

 जबकि लड़की की फ्रॉक धुली हुई थी और उसने बालों में खूबसूरत हेयर बैंड भी लगाया हुआ था। 
 लड़की बेहद खुश दिखाई देती थी।  उसका चेहरा अत्यंत आनंदित था।  और वह बड़े ही कौतूहल से पूरे होटल को इधर-उधर से देख रही थी। 
     उनके टेबल के ऊपर जो पंखा चल रहा था।    जिससे उन्हें ठंडी-ठंडी हवा मिल रही थी। लड़की उसको भी बार-बार देख रही थी। लड़की नरम फोम वाली कुर्सी पर बैठकर बेहद प्रसन्न दिखाई देती थी। 

 तभी उनकी टेबल के पास बेटर आया और दो स्वच्छ गिलासों में ठंडा पानी उनके सामने रखा। 

उस आदमी ने अपनी बेटी के लिए एक मसाला डोसा लाने का आर्डर दिया। 

ऑर्डर सुनकर लड़की के चेहरे की खुशी कई गुना बढ़ गई। 

 वेटर ने उनसे पूछा ! और आपको

 आदमी ने जवाब दिया ! नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस एक ही डोसा लाना है

 थोड़ी ही देर में गरम-गरम बड़ा वाला मसाला डोसा, सांभर, नारियल चटनी के साथ उनके टेबल पर आ गया। 

 लड़की बड़े चाव से डोसा खाने में व्यस्त हो गई। और उसकी उत्सुकता को देखकर वह आदमी पानी पी रहा था। 

 इतने में उस आदमी का फोन बजा।  उसके  पास फोन वही पुराना वाला था। शायद उसके किसी मित्र का फोन था।  वह उसे बता रहा था कि आज उसकी बेटी का जन्मदिन है। और वह बिटिया को लेकर होटल में आया है। 

 उसने अपने मित्र को बताया कि मैंने अपनी बेटी को वादा किया था कि जब वह कक्षा में पहले नंबर पर आएगी तो वह उसे उसके जन्मदिन पर डोसा खिलाएगा और वह इस समय डोसा खाने में खूब मगन हैं। 

 कुछ देर दूसरी तरफ की आवाज सुनने के पश्चात..... 
 
यह आदमी बोल रहा था ! नहीं रे ! मेरे पास इतने पैसे कहां हैं..... मेरे लिए घर में भात बना हुआ है।  मैं और इसकी मां वहीं खाएंगे। 

 अभिषेक का ध्यान उसकी बातें सुनने में व्यस्त था और चाय पीते हुए यही सोच रहा था कि
 चाहे कोई कैसा भी हो।  वह अमीर हो या गरीब, दोनों ही अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। 

 अभिषेक काउंटर पर गया और अपनी चाय के पैसों दिए।  साथ साथ दो डोसे के पैसे भी दिए और होटल मैनेजर से एक डोसा उस आदमी को भी देने के लिए कहा। 
 
अभिषेक ने मैनेजर से कहा ! अगर वह पैसों के बारे में पूछे तो उसे कहना कि जब तुम फोन पर बातें कर रहे थे। तब हमने तुम्हारी बातें सुनी। आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है। और वह स्कूल में पहले नंबर पर आई है। इसलिए होटल की तरफ से यह तुम्हारी लड़की के लिए इनाम है। उसे आगे चलकर खूब मन लगाकर पढ़ाई करने    को बोलना। और प्लीज 'मुफ्त' शब्द का इस्तेमाल भूल कर भी मत करना। नहीं तो उस पिता के स्वाभिमान को चोट पहुंचेगी। 

 अभिषेक की बातें सुनकर होटल मैनेजर मुस्कुराया। 

 होटल मैनेजर बोला !  आपने हमें इस बात से अवगत कराया।  इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार है। बिटिया और उसके पिता की आवभगत का पूरा जिम्मा आज हमारा है। आप यह पुण्य कार्य किसी अन्य जरूरत के लिए कीजिएगा। 
 यह कहकर वेटर को एक और डोसा उस टेबल पर पहुंचाने का आर्डर दिया। 



 
 अभिषेक बाहर से देख रहा था। उस लड़की का पिता और डोसा आया देखकर हड़बड़ा गया।  

 लड़की का पिता कहने लगा ! कि मैंने तो एक ही डोसा बोला था। 

   तब मैनेजर ने खुश होते हुए कहा ! कि अरे हड़बड़ाओ मत भाई ! हमने तुम्हारी बातें सुनी और हमें पता चला तुम्हारी लड़की स्कूल में पहले नंबर पर आई है। इसलिए इनाम में आज होटल की ओर से तुम दोनों को डोसा दिया जा रहा है। 

उस पिता की आंखें भर आई और उसने अपनी लड़की को कहा।  देखा गुड़िया ! तू ऐसी ही मन लगाकर पढ़ाई करेगी तो देख क्या-क्या मिलेगा। 

 पिता ने वेटर से पूछा ! कि क्या मुझे यह डोसा पैक करके मिल सकता है। अगर मैं इसे घर लेकर जाऊंगा तो मैं और मेरी पत्नी दोनों मिलकर खा खा लेंगे। उसे ऐसा खाने को नहीं मिलता। 

 मैनेजर ने कहा ! जी नहीं श्रीमान ! आप अपना दूसरा डोसा यहीं पर थोड़ा खाइए। 
 
     आपके घर के लिए हमने डोसा, केक और मिठाइयों का एक पैक अलग से तैयार करवाया है। आज आप घर जाकर अपनी बिटिया का जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाइएगा। 

 बाहर खड़े होकर सारी बात सुन रहे अभिषेक की आंखें खुशी से भर आई। अब उसे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि नेक कार्य के लिए समय का इंतजार नहीं करना चाहिए। अच्छे काम के लिए एक कदम आप भी आगे बढ़ा कर देखिए। मन को बहुत खुशी मिलती है। जिंदगी में किसी के प्रति की गई भलाई कभी व्यर्थ नहीं जाती वह कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में आपके पास लौट कर जरूर आती है। 

 Moral :- किसी जरूरतमंद को देने से कभी कम नहीं होता बल्कि कई गुना बढ़ कर मिलता है। इसे कहते हैं सच्चे आनंद की प्राप्ति। 

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