Ads Top

जीने की प्रेरणा - Inspirational Story In Hindi - Storykunj



हेलो फ्रेंड्स ! यह स्टोरी मेरे एक परिचित से जुड़ी हुई है। उनका नाम है रितेश। रितेश के बड़े भाई - भाभी के अलावा दो बहने हैं। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। रितेश भाई - बहनों में सबसे छोटे हैं। 

एक दिन बातों ही बातों में रितेश ने अपने जीवन  की बड़ी हृदय - विदारक बात बताई। 
 
वह बताते हैं कि कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद उनका मन टूट गया था। उन्हें नौकरी नहीं मिल रही थी। मन में डर और घबराहट थी कि पता नहीं नौकरी मिलेगी कि नहीं। निराशा मन पर हावी हो रही थी।  
     
परिवार वाले उम्मीद लगा कर बैठे थे। मां आस लगाए रहती कि कोई ढंग की नौकरी मिलेगी और मैं भी पिताजी के साथ खर्चों में हाथ बटाऊंगा । पिताजी की पास ही के गांव में एक छोटी सी परचून की दुकान थी।  इंटरव्यू दे - दे कर थक चुका था। पर अच्छी नौकरी नहीं मिलने से मैं टूट कर बिखर गया था। 
     
 महंगाई के दौर में बड़े शहर में छोटी नौकरी, बचत कम, मानो दुनिया नर्क बन गई हो।  पिताजी की कमाई से घर का खर्चा पूरा नहीं पड़ रहा था।  तभी पिताजी ने कुछ पूंजी  उधार लेकर मेरी भी एक छोटी सी परचून की दुकान करवाई। इसी बीच घर में छोटी बहन की शादी हुई। 

 शादी में बड़ी बहन और जीजाजी जयपुर (राजस्थान) से आए थे। राजस्थान में उनके तेल के मील हैं।  विवाह धूमधाम से निपट गया। सभी मेहमान विदा हो चुके थे। तभी जीजा जी ने मुझे अपने पास बुलाया।  और बोले तुम इस छोटी सी दुकान में क्या कमा पाओगे। मेरे पास राजस्थान आ जाओ। मैं तुम्हें मील में ही काम पर लगा दूंगा। अगले दिन बहन - जीजा तो चले गए।  लेकिन जीजाजी की कही हुई बात मेरे दिमाग में घूमने लगी।  धीरे-धीरे दुकान से मन हटने लगा और अगले ही महीने मैंने राजस्थान जाने का विचार बना लिया। 
 
पिताजी ने मुझे जाने से मना भी किया। बोले!   अभी नई दुकान है काम - धंधा बढ़ने में थोड़ा समय लगेगा ।  लेकिन मुझे जीजा जी पर भरोसा था। 

 मैं राजस्थान बहन के घर पहुंच गया। दिन बीतते रहे इसी आस में कि जीजा जी कोई काम पर लगाएंगे। लेकिन उन्होंने मुझे किसी भी काम में नहीं लगाया।  बस आश्वासन देते रहे। करीब छ: महीने इसी तरह गुजर गए। इधर मेरी दुकान भी किराए की थी।

 पिताजी ने शुरु के दो-तीन महीने बंद दुकान का किराया भरा। उसके बाद दुकान उठा ली। जीजा जी से निराशा मिलने के बाद मैं वापस अपने घर आ गया। 




 अब मैं फिर से बेरोजगार था। दुकान भी जाती रही। घर में आर्थिक तंगी बहुत थी। भाई - भाभी भी अलग रहते थे। वह कोई खर्चा नहीं देते थे। एक दिन पिताजी ने साफ - साफ मना कर दिया कि अब वह और भार नहीं उठा सकते । ह्रदय रोने लगा। अब जीने का मन नहीं है। मां के बैग से कुछ पैसे चुपके से लेकर घर से भागने के लिए रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया।  मेरे मन में नकारात्मक विचार हावी हो रहे थे।
     
 एक बार तो मन में आया कि इधर ही कटकर मर जाए। मगर नहीं,  इतनी हिम्मत नहीं बची। मां - पिताजी का ख्याल बार-बार आ रहा था।  सो मैंने बरेली की टिकट कटवा ली। सोचा चलो वहीं से कहीं चल कर बहुत दूर नई दुनिया बसाएं।  मन में बहुत कुछ चल रहा था।  मन इतना भारी मानो आज खुद के साथ धोखा कर दिया हो। 

 खैर इससे पहले की ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ती।    
एक दिव्यांग पति-पत्नी डिब्बे में खड़े  दिखे।  वे देख नहीं सकते थे। कोई भी उनको बैठने की जगह नहीं दे रहा था।  वे मेरे बगल की सीट के पास थे।  मैंने सीट पर खिसक कर उन्हें बैठने की जगह दे दी। 

 वह मुझे धन्यवाद देने लगे। 

 धीरे-धीरे ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली।  दिव्यांग व्यक्ति से बातचीत आगे बढ़ती गई।  उन्होंने मुझे अपना नाम भावेश कुमार बताया वे बरेली के रहने वाले थे। 

 मैं बोला सर आपको आंखों से दिखाई नहीं देता है।  ऐसे में आप जिंदगी को कैसे जीते हो? 

 उन्होंने अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रख कर कहा ! मैं बेबस नहीं हूं, आप ऐसा ना समझें,  मैं अंधा हूं, लेकिन जीवन मजे से कट रहा है। 
 
रितेश ने पूछा !  आपका खर्चा कैसे चलता है? 

 उन्होंने जवाब दिया ! बहुत आसान है बस जिंदगी को मकसद बना दो।  जब जिंदगी का मकसद समझ में आ जाए तो समझ लेना कि विचारों से ही सिद्धि प्राप्त होती है। 

 आपका पूछने का मतलब है। कि मुझ अंधे को कौन काम दे सकता है? 
  
सो मैं एक एन. जी. ओ. में काम करता हूं।  और इसी तरह जीवन में आगे बढ़ा रहा हूं।  जिंदगी कट जाती है। दो रोटी खाकर...... 

 उस दिन भावेश कुमार जी से मेरी बहुत सारी बातें हुई। 

 अब मुझे खुद पर शर्म आ रही थी कि असल में अंधा तो मैं हूं।  जो सब कुछ ठीक होते हुए भी अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा हूं।

 आखिर क्यों? 
पढ़ा लिखा हूं, सब कुछ है। 
 आज अगर मुझमें कमी है तो एक हौसले की। 
 जो अधूरा बना कर रखा है। 

 भावेश भाई दिव्यांग नहीं,  बल्कि मैं हूं जो सब कुछ सामने दिखते हुए भी पीछे भागने वाला व्यक्ति हूं। 

 भावेश कुमार जी ने मुझसे पूछा ! भाई तुम सुनाओ तुम कहां जा रहे हो? 

 मैं धीरे से बोला ! अभी तक मुझे मंजिल नहीं मिली  थी। 

  मगर हां ! आपने आज मुझे एक नया रास्ता दे दिया। 

 अब मैं अगले स्टेशन पर ही घर वापसी का टिकट ले रहा हूं।  और अब मैं बिल्कुल तनावमुक्त हूं। 
 क्योंकि आज मुझे जीवन जीने की प्रेरणा मिल गई। 

 अब मैं अकेला नहीं हूं। मेरे साथ मेरा हौसला मजबूत खड़ा है । अब मैं हर परिस्थिति का डटकर सामना करूंगा और कुछ बनकर दिखाऊंगा। 
 
    Inspirational :-  जिंदगी ईश्वर के द्वारा दी गई एक खूबसूरत गिफ्ट है । कभी-कभी हमारी जिंदगी इतनी खूबसूरत नहीं होती जितनी कि हम चाहते हैं। अगर जिंदगी का लक्ष्य हो तो हम वो सब कर सकते हैं। जो करना चाहते हैं। 

 अगर आपको हमारी Story पसंद आई हो तो अपने Friends  को भी Share  कीजिए और Comment  में बताइए कि आपको कैसी लगी  यह Story 

1 comment:

Powered by Blogger.