पंख में मांझा - Real Story In Hindi - Storykunj
15 अगस्त के आसपास के दिनों में जब नीले आसमान में रंग - बिरंगी खूब पतंगे उड़ती हैं। ऐसे में पतंग के मांझे से ना जाने कितने ही पक्षी चोटिल हो जाते हैं। ऐसे ही एक कौवे के पंख में मांझा उलझा हुआ होने के कारण कौवे की कैसी दशा थी ? यह कहानी उस पर है।
घर के आंगन में नीम का एक बड़ा पेड़ है। पेड़ की शाखाएं घर की छत पर और बाउंड्री वॉल के बाहर गली तक फैली हुई हैं।
आज जब छत पर पक्षियों के लिए दाना डालने गई थी। तो पेड़ पर एक कौवा लटका हुआ दिखा। उसका एक पंख पतंग के मांझे में बुरी तरह फंस गया था। और वह तिरछा लटककर छूटने के लिए फड़फड़ा रहा था।
काफी देर तक मैं उसे देखती रही। मुझे उम्मीद थी कि शायद उसकी डोर ढीली पड़ जाएगी। और वह छूट जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कौवे की छटपटाहट बढ़ रही थी। बारिश हो कर चुकी थी। और बारिश में भीग कर कौवे के पंख चिपक गए थे। जब कौवा डोर से छूटने में कामयाब नहीं हो पाया, तो मायूस होकर एक डाल के सहारे बैठ गया था।
वह पेड़ पर काफी ऊंचाई पर था, मेरी पहुंच से बहुत दूर। मन में सवाल आया, क्या यह ऐसे ही यहां पड़े - पड़े भूख प्यास से दम तोड़ देगा। मेरा मन कुलबुला उठा, मैंने अपने पड़ोस वालों को कौवे की व्यथा बताई। सब ने अपनी ओर से भरपूर सहानुभूति जताई। लेकिन किसी ने कोवे को देखना तक जरूरी ना समझा। भला एक कौवे के लिए कोई अपना सुबह का समय वेस्ट क्यों करता। जब सब अपने - अपने घर में अंदर चले गए, तो मैंने कौवे को एक बार और देखा उधर कौवे की छटपटाहट बढ़ रही थी, इधर मेरी।
तुरंत बर्ड हेल्पलाइन पर फोन किया। उधर से आवाज आई, मैडम ! हम कुछ नहीं कर सकते। आप फायर ब्रिगेड को फोन लगाओ। मैंने फायर ब्रिगेड को फोन किया। फोन दूसरी बार में उठा। मैंने उनसे कौवे को बचाने की अपील की
तो उधर से पॉजिटिव जवाब आया। मैडम ! आप पता लिखवाए...... मैं अभी गाड़ी भेज रहा हूं।
बात के मुताबिक मैं उनका इंतजार करने लगी। थोड़ी देर में दमकल की गाड़ी आ गई। गाड़ी से आए फायर ब्रिगेड के लोगों ने कहा ! आप चिंता मत करो। हम लोग आ गए हैं। कौवे को निकाल देंगे। दमकल की गाड़ी को देख आसपास के लोगों में थोड़ी खलबली मची। एक आदमी ने पूछा ! दमकल की गाड़ी आई है, कहीं आग लग गई है क्या? मैंने कहा आग नहीं लगी एक कौवा पेड़ पर फंस गया है। मेरी बात सुनते ही वह आदमी चलता बना।
बहरहाल दमकल कर्मी बांस में लगे तेज हुक से मांझा काटने लगे। और कौवा डरकर फड़फड़ाने लगा। कौवे को फड़फड़ाता हुआ देख ढेर सारे साथी कौवे कांव-कांव करने लगे। देखते ही देखते आसपास कोओ की फौज मंडराने लगी। आखिर जल्दी ही मांझा कट गया। और कौवा उड़ कर पास ही एक खाली मैदान में आ बैठा। वह बहुत घबराया हुआ था। उसके पंख में मांझा अभी भी उलझा हुआ था। सिर्फ ऊपर की डोर कटी थी। लेकिन अब वह उड़ान भर ले रहा था, भले ही मुश्किल से। अब उसे पकड़ना मुश्किल था।
उसके छूट जाने की बहुत खुशी थी। लेकिन पंखों में बंधन का मलाल अभी भी था।
अब सुबह जब भी छत पर जाती हूं नजरें उसी कौवे को तलाशती हैं।
काश ! उसके साथियों ने चौच मारकर उसका मांझा खोल दिया हो। और वह पूरी तरह आजाद हो गया हो।
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