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मन की जिज्ञासा - Moral Story In Hindi - Storykunj


 हेलो फ्रेंड्स Storykunj  In Hindi  में आपका स्वागत है। आइए पढ़ते हैं ममतामई मां और उसके पुत्र के स्नेह पर आधारित यह स्टोरी मन की जिज्ञासा। 

जब से पैरों में दर्द रहने लगा था। सुशीला को रात में नींद कम ही आया करती थी। मालिश करने के बाद थोड़ी बहुत नींद आ भी जाती तो आधी रात  में फिर से दर्द शुरू होने के कारण आंख खुल जाती है। 

 आज भी हमेशा की तरह आधी रात में सुशीला की नींद खुल गई थी।  और अपने बेटे रोहन को बहू के कमरे की बजाय अपने बिस्तर पर सोया हुआ देखकर सुशीला चिंतित हो उठती है। बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह रोहन को आड़ा-तिरछा लेटा हुआ पाकर आज फिर सुशीला का दिल अनगिनत आशंकाओं से भर उठा था। 

 सुशीला धीरे से बिस्तर से उठी और अपना तकिया बेटे के सर के नीचे लगा दिया।  और उसके सर को सहलाते हुए वह धीरे से बोली !

 रोहन क्या बात है ? आजकल तू कुछ परेशान सा रहता है। सब ठीक तो है ना बेटा। 

 हां मां
 मां के ममतामई स्पर्श से रोहन की कच्ची नींद भी खुल गई थी।  और वह करवट लेकर मां से लिपट गया था।

पिछले महीने रोहन के पिता का देहांत होने के बाद से अब उसे भी बेफिक्र नींद कहां आती थी। एक अजीब सी चिंता लगी रहती थी। 

ऊपर से रोहन की यह बेचैनी देखकर सुशीला और परेशान हो उठी। 

 सुशीला :- आजकल जाने कब तू मेरे बिस्तर पर आकर सो जाता है। 
बहू से कोई बात पर नाराज है क्या तू ?

 रोहन :- नहीं मां ऐसी कोई बात नहीं है। 
        रोहन मां की बात को टाल गया। 

 सुशीला ने उठकर टेबल पर रखे हुए जग से गिलास में पानी डालकर पिया। और पानी का जग वापस टेबल पर रखकर बिस्तर पर लेटने की बजाय एक तकिए का सहारा ले दीवार से अपनी पीठ टिका बैठ गई। और एक बार फिर से उसके मन की बात जानने की कोशिश की। 

 सुशीला :- फिर क्या बात है बेटा ?

 रोहन :- कुछ भी तो नही मां

मां की गोद को छोटे बच्चों की तरह बाहों में भरने की कोशिश करता रोहन उसके हर सवाल को टालने की कोशिश कर रहा था।

 सुशीला :- बेटा ....बता ना... 
 देख तेरी बेचैनी देखकर मेरा मन घबराता है । तेरी बेचैनी की क्या वजह है..... तू कुछ तो बता.....

 ऐसा कहकर सुशीला ने बेटे का सर अपनी गोद में रख लिया।

मां की घबराहट महसूस कर रोहन पीठ के बल लेट गया। और मां के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर अपने सीने पर रख लिए।

 और बड़े इत्मीनान से बोला ! मां !
आपको याद है, जब मैं बड़ा हो रहा था तब पापा ने मेरा कमरा अलग कर दिया था ?

 सुशीला रोहन को याद दिलाते हुए कहती है। अपने लिए अलग कमरे की जिद्द भी तो तूने ही की थी। उस समय तू बोला था पापा मैं बड़ा हो गया हूं।  अब मुझे अपना अलग कमरा चाहिए। 

 रोहन :- "हां....लेकिन तब आप मेरे सो जाने के बाद उस कमरे में धीरे से आकर मेरे सर को   प्यार से सहलाती थी। और अक्सर मेरे बिस्तर   पर ही सो जाया करती थी। 

 सुशीला मुस्कुराते हुए कहती है और सुबह जब तू  मुझे अपने बिस्तर पर सोया पाता था तो तू अक्सर मुझसे एक सवाल पूछा करता था।

याद है ?

 पूर्णिमा की चांदनी रात थी कमरे के अंदर खिड़की से आती हुई मंद मंद रोशनी में मां-बेटे अपनी भूली-बिसरी बातें याद कर रहे थे।

 रोहन :- हां.... मां मुझे सब याद है। 


 सुशीला :- अच्छा तो बता क्या पूछा करता था ?

 वैसे तो रोहन को कुछ भी याद नहीं रहता था। 

सुबह की कही हुई कितनी ही बातों को शाम तक भूल जाने वाले रोहन को इतनी पुरानी वह बात कहां याद होगी। 

यह सोचकर मां मन ही मन मुस्कुराई थी।

 रोहन :- मैं आपको अपने बिस्तर पर सोया हुआ     देखकर यही पूछता था कि "मां क्या आप पापा से नाराज हो ?"





बेटे की अद्भुत यादाश्त क्षमता से रूबरू होती उदास मां मुस्कुराने लगी। 
  उसके चेहरे की मुस्कान,  कमरे की मद्धिम रोशनी में भी जगमगा उठी ।

 सुशीला :- हां पर बेटा, तुझे ऐसा क्यों लगता था           ? कि मैं तेरे पापा से नाराज हूं। 

आज वर्षो बाद शायद सुशीला भी बेटे के मन की इसी तरह की बात को जान लेना चाहती थी।  जिसे जानने की फुर्सत उसे आज से पहले कभी नहीं मिली।

 रोहन :-  "क्योंकि मैं आपको हमेशा पापा के                    साथ देखना चाहता था।

 पिता जी को याद करते हुए बेटे ने अपने सीने पर रखे मां के दोनों हाथों पर अपनी पकड़ मजबूत कर दी।

 सुशीला :-  बेटा ! मैं भी तुम्हें हमेशा बहू के  साथ ही देखना चाहती हूँ। 

मां ने झुक कर बेटे का माथा चूमकर कहा।

 रोहन :- मां........ 
तब आप पापा को कमरे में अकेला छोड़ मेरे पास क्यों आ जाती थी ?

बरसों बाद बेटा भी अपने मन की जिज्ञासा मां के सामने रख रहा था।

 सुशीला :-  बेटा ! डरती थी कि अकेले कमरे में कहीं तू डर ना जाए। इसीलिए मैं तेरे पास चली आती थी। 

 रोहन :- मां.... ठीक इसी प्रकार......

अब जब पापा हमारे बीच नहीं रहे, मुझे भी डर लगता है...

 सुशीला :-  क्यों बेटा ?

मां अपने बेटे का "डर" जानने को अधीर हो उठी.....
 
 रोहन :-   यही कि कहीं आप अपने अकेलेपन से डर ना जाओ।

इसलिए मैं .....

रोहन का दिल भर आया और इसके आगे वह कुछ कह नहीं पाया। 

 एक दूसरे के लिए इतने चिंतित......

, मां-बेटा एक दूजे से लिपट गए थे।  और सारे शब्द प्रेम भरे आंसुओं में बह रहे थे....


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