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मां - Poetry In Hindi - Storykunj



जब भी कहीं डर या कठिन वक्त हो तो जेहन में एक मजबूत आवरण सा महसूस करता हूं। 
  यह वही आवरण( मां की कोख) है जो मेरी मां ने मुझे नौ महीने तक बड़ी-बड़ी विपत्तियों से बचाकर मुझे इस दुनिया में सुरक्षित आने का सौभाग्य दिया। 

मां तू आज साथ नहीं, 
 लेकिन वक्त की धूप से आए हुए पसीने को पोछने के लिए तेरा आंचल मैं अपने माथे पर महसूस करता हूं। 
 
 मां तू आज साथ नहीं, 
दुनिया की आपाधापी में अक्सर थका हुआ जब घर पहुंचता हूं तो
 तेरी फिक्र के दो बोल मुझे कानों में आज भी सुनाई पड़ते हैं। 

 मां तू आज साथ नहीं है, 
 जब भी मैं खुद को असहाय सा पाता हूं
 मैं अपने सिरहाने तेरी लोरी के वह मीठे बोल आज भी महसूस करता हूं। 





 मां तू आज मेरे साथ में तो नहीं है
 पर मैं जब भी भटकने लगता हूं। तो तेरी वह सीख मुझे रास्ता दिखाती है
 और जब भी जीवन में कठिन वक्त आता है।  तेरी दुआ को हमेशा मैं अपने पास ही पाता हूं 

 मां तू आज मेरे साथ नहीं, 
पर जेहन में एक मजबूत आवरण सा महसूस करता हूं। 
 और पूरे आत्म-सम्मान के साथ इस भागती -दौड़ती दुनिया में जीता हूं। 

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