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अभिमान - Moral Story In Hindi - Storykunj



राकेश अपने परिवार के लिए अकेला कमाने वाला था। उसके परिवार में पत्नी,  दो बेटे और एक बेटी थी। तीनों बच्चे शहर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। राकेश की पत्नी बहुत समझदार थी।  पति की थोड़ी कमाई के अंदर ही वह अपने घर को बहुत हिसाब से चलाती थी। राकेश अपने परिवार के साथ हंसी-खुशी जीवन  बिता रहा था। 

 एक दिन राकेश सोचने लगा कि अगर वह ना हो तो उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता। धीरे-धीरे राकेश को इस बात का अभिमान हो गया कि उसके कारण ही उसका घर चलता है। और वही सब का पेट भरता है। 

 घर के नजदीक ही उसकी छोटी सी कन्फेक्शनरी की दुकान थी। उससे जो आय होती थी।  उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था। 

चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था। उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता। इसलिए अब वह लोगों के सामने डींग हांका करता था। अब वह पत्नी व बच्चों पर बात - बात में झल्लाने लगा था।

एक दिन राकेश के पड़ोसी गुप्ता जी ने उससे कहा कि वह एक सत्संग में जा रहे हैं। क्या आप मेरे साथ सत्संग में चलेंगे? राकेश ने हामी भरते हुए सत्संग में चलने की इच्छा जताई तो वह भी गुप्ता जी के साथ सत्संग में पहुंचा। 

वहां पर ज्ञानी संत उपस्थित सभी भक्तों से कह रहे थे। दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता। जाने वाला दुनिया से चला जाता है परंतु दुनिया अपने तरीके से पहले की तरह चलती रहती है

यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या यह समाज ठहर जाएगा। हर इंसान अपना भाग्य अपने साथ लेकर आता है। सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है। 

सत्संग समाप्त होने के पश्चात राकेश ने संत से कहा !
 'मैं दिन भर कड़ी मेहनत से कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है। मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।'

संत बोले, ' पुत्र यह तुम्हारा भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है।' 

इस पर राकेश ने कहा ! 'आप इसे प्रमाणित करके दिखाइए।' 

संत ने कहा ! ठीक है ! जैसा मैं कहूं तुम वैसा करो। 
 'तुम बिना किसी को बताए घर से पूरे एक महीने के लिए गायब हो जाओ।' 

राकेश में संत की बात मानी और उसने ऐसा ही किया। 

संत ने यह बात फैला दी कि उसे एक बाघ ने खा लिया है। और अब वह हमारे बीच नहीं है। 

 राकेश के परिवार वालों ने कई दिनों तक शोक मनाया। गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए। 





एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। और गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी। एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया। कुछ ही दिनों में परिवार में पहले की भांति अच्छी तरह गुजर- बसर होने लगी। 

एक महीना पूरा होने के बाद राकेश छिपता-छिपाता रात के वक्त अपने घर आया। घर वालों ने भूत समझकर डर के मारे दरवाजा नहीं खोला। 

जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने वह सारी बातें बताईं तो उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही जवाब दिया। 

 चले जाइए यहां से... हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं। 

 पत्नी का ऐसा जवाब सुनकर राकेश का सारा      अभिमान उतर गया। 

     Moral :-  यह संसार किसी के लिए भी नहीं रुकता।  यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है। इस संसार को चलाने वाला तो परमपिता परमात्मा है। हम सब की डोर उसके हाथ में है। उसी ने इस धरती पर हम सबको जन्म दिया है। इसलिए अभिमान करना व्यर्थ है। 

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