व्यथा एक निर्धन पुरोहित की - Moral Story In Hindi - Storykunj
ये अधिकांश पूजा - पाठ कराने वाले पुरोहितों, पंडितो के घर की कहानी है । सभी धार्मिक अनुष्ठान पंडितों के द्वारा ही संपन्न कराए जाते हैं। हर ब्राह्मण अमीर नही होता। ये बात समाज को समझनी चाहिए। इंसानों का हित करना चाहिए। ना कि किसी जाति विशेष का। यह कहानी एक निर्धन पुरोहित के जीवन पर आधारित है। आइए पढ़ते हैं आर्थिक समस्या पर आधारित यह कहानी व्यथा एक निर्धन पुरोहित की।
आज राधेश्याम पंडित जी गांव मे एक यजमान के यहां सत्यनारायण भगवान की कथा करके घर आए।
पंडित जी थके हुए थे। अपनी पत्नी से बोले ! जरा मुझे एक गिलास पानी पिलाना । पंडित जी के परिवार में पत्नी, दो बेटी और एक बेटा है।
पंडित जी की छोटी बेटी व बेटा खुश होते हुए, दौडते हुए आए और बोले बापू - बापू आप हमारे लिए क्या लेकर आए ?
पंडित जी ने एक थैली मे रखी आटे की पंजीरी का प्रसाद और कुछ फल सेब - केले बच्चो को देते हुए कहा बेटा ! ये लो पंजीरी का प्रसाद तुम्हारे लिए।
बेटी उदास होती हुई बोली ! बापू मिठाई नही लाए।
पंडित जी बोले ! बेटा मिठाई यजमान लाए तो थे। परंतु वह कम थी। इतनी की सिर्फ वो व उनके घरवाले खा सके। इसीलिए हमारे लिए तो सिर्फ आटे की पंजीरी का प्रसाद ही बचा।
राधेश्याम पंडित जी अपने बच्चों को प्यार से समझाते हुए बोले ! आज तो ये खाओ। अगली बार मिठाई ले आऊंगा ।
तभी बेटा बोला ! बापू हमारे स्कूल की फीस भी भरनी है। आज मास्टर जी कह रहे थे। अगर जल्दी स्कूल की फीस जमा नही की तो हमको परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा।
बेहद दुखी मन से पंडित जी ने कहा ! बेटा मास्टरजी से कहना फीस जल्दी ही भर देंगे ।
इतना सुनकर पंडिताईन बोली ! सुनते हो ! आपकी दूर की रिश्तेदारी में जो आपके भाई लगते हैं उनके यहां पोती की शादी है। हम लोगों को उनके यहां शादी में जाना चाहिए न ? यदि हम नही जाएंगे तो कल को वह भी हमारे बच्चों की शादी में नहीं आएंगे ।
पंडित जी की ऑखो मे आंसू आ गए और बोले !
पंडिताईन तुम तो जानती ही हो। पूजा - पाठ का कार्य करके मैं तुम सबकी इच्छाएँ पूरी नही कर पा रहा हूँ।
आज मैंने जो सत्यनारायण भगवान की कथा करवाई है । उसके बदले मे मुझको एक सो एक रुपये दक्षिणा मिली है। और पचास रुपये चढावे मे आए है। अब तुम ही बताऔ इन एक सो पचास रुपये में क्या होगा। इसमें मैं कौन-कौन सी जिम्मेदारी पूरी कर सकता हूं। मैं अपने बेटे की स्कूल फीस भरूँ या बेटी को कपडे दिलवाऊ या रिश्तेदार की शादी के लिए सामान खरीदूँ ??
आज अगर मेरे पास पैसा होता तो मैं अपने बच्चों को सरकारी स्कूल मे नही पढा रहा होता। बल्कि मैं भी किसी अच्छे प्राइवेट स्कुल मे पढाता । मैं भी चाहता हूं मेरे बच्चों को अच्छी सुख- सुविधाएं मिले।
मेरा जन्म ब्राह्मण कुल मे हुआ है। यदि मैं अपना पुरोहित कर्म छोड़ देता हूं तो पूर्वजो की कीर्ति को ठेस पहुंचेगी। और अगर ये सब ही करता रहूँ तो बच्चो का अच्छा भविष्य कैसे बनाऊं।
पंडिताईन जानती हो, आज हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम गरीब है। फिर भी जब मै पूजा करवाकर घर आता हूँ। तो लोग मुझसे पूछते हैं कि और सुनाइए पंडित जी ! यजमान को कितने का चूना लगाया ?
लोग हमारे बारे में ऐसा क्यों सोचते हैं? हम भी मेहनत करते हैं। चार पैसे कमाना हम भी चाहते हैं।
ये तो भगवान जानते है कि मैने चूना लगाया या नही लगाया । क्योंकि हम ब्राह्मण हैं हम सामान्य श्रेणी में आते हैं इसलिए हमें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। हमे सस्ता राशन नही मिलता , ब्राह्मण हैं इसलिए मेरे बच्चों को छात्रवृत्ति नही मिलती , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चो को निशुल्क किताबे नही मिलती , ब्राह्मण हैं इसलिए मेरे बच्चे की स्कूल की फीस ज्यादा है । ब्राह्मण ना हुए जैसे कोई हमने गुनाह कर दिया।
पंडिताईन हमारा जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ तो क्या इसमें हमारा दोष है ??
क्या कोई ब्राह्मण गरीब नही हो सकता ??
पता नही लोग हम ब्राह्मणो को लुटेरा जैसा क्यो समझते है ??
हम पुरोहित कर्म करते हैं। यजमान अपनी खुशी से हमें जो देते हैं हम उसी में अपना जीवन गुजर-बसर करते हैं। हमने किसका पैसा लूटा है ??
कब तक हम ऐसी दयनिय स्थिति मे रहेगे । सरकार हम जैसों के बारे में क्यों नहीं सोचती।
पंडिताईन बोली ! आप चिंता मत करिए। हम ब्राह्मणो के हितैषी भगवान है। हमने कभी गलत नही किया। एक न एक दिन हमारा भी भला होगा। आप रोइए मत।
आप मेरे पायल और बिछिया गिरवी रखकर बेटे की फीस भर दीजिए और शादी का जरूरी सामान ले आइए।
इतना कहकर पंडिताईन तो रसोई मे भोजन बनाने चली गई व पंडित जी बच्चौ से बात करने लग गए।
Moral :- हर ब्राह्मण अमीर नही होता ये बात समाज को समझ लेना चाहिए और इंसानों का हित करना चाहिए ना कि किसी जाति विशेष का ।
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