हिल गई काम-धंधे की धुरी - Short Story In Hindi - Storykunj
आज के दौर में हर कोई अपने रोजगार को लेकर संशय में है। हर किसी के मन में डर और घबराहट है। सबको एक ही चिंता है कि ना जाने कल को मेरी नौकरी रहेगी या नहीं, पता नहीं कल को मेरा व्यवसाय चल पाएगा या नहीं।
यह पंजाब के रहने वाले एक कारोबारी की कहानी है। 'हिल गई काम-धंधे की धुरी'।
कारोबारी जगत भी आसान नहीं है। उसकी भी मुश्किलें बहुत बड़ी है। लेकिन आज के दौर में उसका दुख - दर्द समझने का वक्त किसी के पास नहीं है। हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि समझना तो दूर, ठहर कर सुनने वाला भी कोई नहीं है।
सतविंदर मेरे पड़ोसी हैं। वह पंजाब के रहने वाले है। वैसे तो उनका खाता-पिता परिवार रहा है। लेकिन उनके पास में इतनी बड़ी पूंजी नहीं थी कि कोई बड़ा बिजनेस शुरू कर पाते।
यही कोई 15 -16 साल पहले की बात है जब वह काम की तलाश में दिल्ली आए थे। यहां उन्होंने सरोजिनी नगर में एक छोटी सी जगह लेकर अपना कंप्यूटर हार्डवेयर का काम शुरू किया। और उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि उनका काम खूब अच्छा चल निकला।
देखते-देखते सतविंदर जी इस काम को इस लेवल तक ले आए कि एक दोस्त के साथ पार्टनरशिप बनाकर उन्होंने राजस्थान में संगमरमर की एक खान खरीद ली। खदान में किया गया निवेश हमेशा जुआ खेलने जैसा ही होता है। जीत जाए तो रातों-रात अमीर बना देता है और हार गए तो कंगाल बना देता है।
सतविंदर जी और उनके पार्टनर को उस खदान से
जितने संगमरमर की उम्मीद थी। उस उम्मीद पर पानी फिर गया।
क्योंकि खदान की एक चौथाई गहराई तक ही संगमरमर निकला। फिर बेकार पत्थर मिलने लगे। जितना माल निकला था। वह भी जल्दी नहीं बिक पाया। अगर माल जल्दी बिक जाता तो शायद कुछ हद तक लागत निकल आती। लेकिन पहले 2008-09 की मंदी आई फिर 2016 में नोट बंदी हो गई । इस मंदी और नोटबंदी ने नाश मार दिया। सतविंदर जी और उनका पार्टनर दो करोड़ से ज्यादा का घाटा खाकर बाहर आए।
और अभी यह करोना जैसी महामारी शुरू हुई।
तो एक दिन यूं ही फोन पर उनसे बातचीत होने लगी। निराशा मेरे मन पर हावी हो रही थी। प्राइवेट नौकरी के चलते मैं भविष्य को लेकर थोड़ा निराश था। लेकिन सतविंदर का कहना था कि भाई साहब आज के टाइम में पूरी दुनिया परेशान है। अकेले हम-आप ही नहीं। कुछ ना कुछ उपाय होगा। आप चिंता ना कर। वाहेगुरु जी पर भरोसा रखो। सतविंदर जी हमेशा से सकारात्मक सोचते आए हैं।
पंजाब की दिलेरी के आगे मेरा सिर हमेशा ही झुका रहता है। आज भी झुका है।
लेकिन सतविंदर की परेशानियां अभी भी कम नहीं हुई है। उल्टा बढ़ती जा रही हैं। सरोजिनी नगर की दुकान पर पांच लड़के काम करते हैं। काम करने वाले पांच में से चार लड़कों को वे तीन महीने तक बस जरूरी खर्चा भर दे पाए। लेकिन अगले महीने वह भी बंद करना पड़ा।
काम-धंधे की पटरी पूरी तरह चरमरा गई थी। पांचवा कर्मचारी दुकान पर ही रहता है। वही बनाता खाता है। फिलहाल सतविंदर जी उसे नब्बे परसेंट सैलरी दे रहे हैं। पर इस महीने उसने अपनी तनख्वाह लेने से मना कर दिया। कहने लगा कि सरदार जी मेरा गुजारा तो चल ही जा रहा है। आप कारोबार पर ध्यान दो। हालांकि उसे भी पता है कि ध्यान देने को कुछ खास है नहीं। दुकान का किराया ज्यों का त्यों है। मगर लॉकडाउन हटने के बावजूद बिजनेस बिल्कुल ठप पड़ गया। दुकान पर काम एक चौथाई भी नहीं आ रहा है।
बहरहाल सतविंदर की चिंता इससे आगे की है। कंप्यूटर हार्डवेयर का काम भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में लंबे समय से चीन की धूरी पर नाच रहा है। हवाई और समुद्री यातायात बंद है। तो जा कर सामान भी नहीं ला पा रहे। यह एक समस्या है।
इससे बड़ी समस्या यह है कि आने वाले दिनों में वहां से सामान लाने का समूचा सिलसिला बिल्कुल खत्म हो गया।
यदि विकल्प के रूप में साउथ कोरिया और ताइवान की ओर देखते हैं। तो उनका खुद का ही काफी सारा हार्डवेयर चीन में बनता है। वहां से माल उठाते हैं तो उतना मार्जिन भी नहीं मिलना। जिससे कि सरोजनी नगर में उसके दम पर जीने लायक तो पैसे कमाए जा सके।
शायद कुछ समय बाद भारत में ही अच्छा और सस्ता कंप्यूटर हार्डवेयर बनने लगे। यह भी कि आने वाले दिनों में चीन से सस्ता, ढंग का सामान कहीं और मिलने लगे। पर उस वक्त का इंतजार करने और नया सिस्टम बनाने की उम्मीद एक अकेले व्यापारी से नहीं की जा सकती।
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