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माता-पिता - Moral Story In Hindi - Storykunj

मॉर्निंग वॉक पर जाना शर्मा जी की पुरानी आदत रही है।  हमेशा की तरह आज जब वह अपने घर से निकले ही थे कि उनके पड़ोसी जयवीर जी भी मिल गए।  वैसे तो वॉक पर जाने का उनका कोई पक्का रूटीन नहीं है। जब भी शर्मा जी उनसे साथ चलने के लिए कहते थे।  तब वे कोई न कोई बहाना बनाकर शर्मा जी को मना कर देते थे।  लेकिन आज पहले से ही घर के बाहर चलने के लिए तैयार खड़े थे।  

 शर्मा जी बोले भाईसाहब ! आज सूरज कहां से निकला है जो आज मेरे बिना बुलाए ही चल दिए।  
 श्रीमान जयवीर जी कहते हैं। क्या बताऊं? भाई साहब तबीयत तो सही नहीं चल रही। डॉक्टर को दिखाया तो उसने सेहत का ध्यान रखने के साथ-साथ मॉर्निंग वॉक के लिए भी बोला है।  

तुम  अपनी भाभी को तो जानते ही हो।  वह एक बार जिस चीज के पीछे पड़ जाती है तो छोड़ती नहीं है।
  आज वह मुझे वॉक पर भेजने के पीछे पड़ गई।  तो मुझे आना ही पड़ा। 
 
शर्मा जी को उनकी हालत पर हंसी आ रही थी।  जयवीर जी भी साथ में हंस पड़ते हैं। 

जयवीर जी हरियाणा के रहने वाले थे।  पर जब से उनके बेटे की नौकरी दिल्ली में लगी है।  तब से पति-पत्नी अपने बेटे- बहु के साथ दिल्ली में ही रहने लगे हैं।

  जयवीर जी :- शर्मा जी कल से आप मुझे भी बुला लिया कीजिए। 

 शर्मा जी :-  नहीं-नहीं कल मैं मॉर्निंग वॉक पर नहीं आऊंगा। 

 जयवीर जी :-  क्यों ? 

 शर्मा जी :-  कल हमारे पोते का जन्मदिन है।  तो आज ही उसके पास जाने के लिए हम निकल रहे हैं।  दो साल हो गए बेटे-बहू और पोते से मिले हुए। विवेक और बहू हमेशा फोन पर पूछते रहते हैं कि हम अपनी दवाइयां समय पर लेते हैं कि नहीं।  सच पूछो तो कभी उसने हमें अपने से दूर होने का अहसास नहीं होने दिया। 

 जयवीर जी :- भगवान सबको ऐसा ही बेटा दे। एक तुम्हारा बेटा-बहू है। और एक मेरे बेटा-बहू।  जो पास रहकर भी कभी मां-बाप का हाल-चाल नहीं पूछते। उल्टा बात-बात पर हमें खरी-खोटी सुनाते रहते हैं।  उनको मां-बाप की कोई परवाह नहीं। हम जिए चाहे मरे। 

 शर्मा जी :- भाई साहब बच्चे कब बड़े हो जाते हैं।  पता ही नहीं चलता। लगता है जैसे कल ही की बात हो। जब विवेक बाजार में या किसी भीड़ भाड़ वाली जगह में मेरी उंगली पकड़कर चलता था। तो मैं यह सोचता था कि हमेशा उसकी उंगली ऐसे ही पकड़े रहूंगा और उसको कभी अकेले होने का एहसास नहीं होने दूंगा। जिंदगी के हर मोड़ पर हमेशा मैं उसके साथ खड़ा रहूंगा। उसे एमबीबीएस कराने के लिए उसकी मां ने अपने गहने भी बेच दिए। कहने लगी यह तो फिर बन जाएंगे। 

दोनों बातें करते-करते घर आ जाते हैं। 

 मिसेज शर्मा :-  अपने पोते के पास जाने के लिए बहुत उत्सुक थी। उन्होंने सारी पैकिंग भी कर ली थी।  बस पोते का गिफ्ट लेना बाकी था। दोनों पति-पत्नी ने सोचा कि गिफ्ट पोते की पसंद का ही लेकर जाएंगे। पसंद पूछने के लिए फोन लगाया तो किसी ने फोन नहीं उठाया। दोबारा फोन करने पर भी दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिलता है। तीसरी बार भी किसी ने फोन नहीं उठाया। 

 मिसेज शर्मा :- शर्मा जी देखिए ना विवेक के घर में कोई भी फोन नहींं उठा रहा है। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। 

 मिसेज शर्मा परेशान हो जाती हैं कि भगवान सब ठीक तो है ना,  कहीं कोई बात तो नहीं। कोई फोन क्यों नहीं उठा रहा। सोचते-सोचते फिर से फोन मिलाती हैं।  इस बार कुछ देर तक बजने के बाद फोन विवेक ने उठाया।

 विवेक :-  हेलो मां ! 

 मां :- क्या हुआ बेटा? तुम दोनों में से कोई फोन क्यों नहीं उठा रहे थे।  पता है मैं कितनी डर गई थी। 

 विवेक :-  मां फोन साइलेंट था। इसलिए पता नहीं चला। 
 
 मां :- अच्छा बेटा ! हमने यह पूछने के लिए फोन किया है कि कल गोलू को अपने बर्थडे पर क्या गिफ्ट चाहिए। 

 विवेक :- मां इस बार हम उसका बर्थडे नहीं मना रहे। 

 मां :-  क्यों????? क्या हुआ बेटा? 
 
 विवेक :- मां अभी यहां मुंबई में नया घर लिया है। और कार भी ली है। तो बहुत पैसे खर्च हो गए। इसलिए अबकी बार खर्चा नहीं कर रहे।  

 मां :- कोई बात नहीं बेटा !  हम किसी को नहीं बुलाएंगे।  बस हम सब परिवार वाले मिलकर अपने बच्चे का जन्मदिन मना लेंगे। 

 विवेक :- पर मां अभी उसके लिए भी मेरे पास पैसे नहीं हैं। 
 
 मां :- अच्छा तो कोई बात नहीं बेटा। 

 मां फोन रख देती है।  और सारी बात विवेक के पिताजी को बताती है।  दोनों बहुत उदास हो जाते हैं। कई दिनों से बेटे-बहू और पोते से मिलने के लिए बहुत उत्साहित थे। 

पर अब क्या कर सकते हैं!!..... 

 मिसेज शर्मा :-  अरे हां ! सुनिए ! हम बच्चों को सरप्राइज तो दे ही सकते हैं। 

  शर्मा जी :- कैसा सरप्राइज ? 
 
 मिसेज शर्मा :-  क्यों ना हम जन्मदिन का केक साथ लेकर चलें। हमें अपने पास आया हुआ देखकर कितने खुश होंगे ना। 

  शर्मा जी :-  हां ! तुम ठीक कह रही हो। ऐसा करता हूं मैं बाजार जा कर बर्थडे कैप और  सजाने के लिए कुछ गुब्बारे ले आता हूं। टॉफियां और केक हम वहीं पहुंच कर शॉप से लेते हुए फिर घर जाएंगे। ठीक हैं। 

 अगले दिन शाम को दोनों मुंबई पहुंच जाते हैं। 

रेलवे स्टेशन से निकलकर वह एक ऑटो में बैठ कर,  पहले मार्केट में पहुंचते हैं।  वहां से गोलू की पसंद का चॉकलेट केक खरीदते हैं। 

 और फिर बेटे के घर के लिए रवाना हो जाते हैं।  दोनों बेटे-बहु को सरप्राइस देने की सोच कर मन ही मन बेहद आनंदित हैं। 

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कुछ देर बाद ऑटो एक बहुत बड़े घर के आगे आकर रूकता है। पूरा घर रोशनी में जगमग हो रहा था। घर के बाहर बड़ी-बड़ी गाड़ियों में लोग अपनी फैमिली के संग आ रहे थे। 

 मिस्टर शर्मा ड्राइवर से पूछते हैं। 

 अरे भाई ! तुमने ऑटो को कहां रोक  दिया। 

 ड्राइवर कहता है बाबू जी ! आपने मुझे यही एड्रेस तो बताया था। 
 
मिस्टर शर्मा ऑटो से बाहर निकलकर आते हैं। 
 बे घर के बाहर लगी हुई नेमप्लेट देखते हैं। 

 विवेक ने अपनी वाइफ के नाम पर घर का नाम रखा था। "अभिलाषा विला"। 
 उसके नीचे छोटे अक्षरों में बेटे और बहू का नाम लिखा था। 

 मिस्टर और मिसेज शर्मा अपने हाथ में केक के डिब्बे को लिए हुए घर के अंदर जाते हैं। 

 विवेक ने बेटे गोलू के जन्मदिन के साथ-साथ नए घर के लिए भी पार्टी रखी थी। पार्टी में शहर के बहुत सारे बड़े लोग फैशनेबल कपड़े पहन कर आए हुए थे। और गोलू अपने दोस्तों के संग खेल रहा था। एक बड़ी सी कीमती मेज पर बहुत खूबसूरत बड़ा सा केक रखा हुआ था। 

 सफर करके आए होने के कारण मिस्टर और मिसेज शर्मा बेहद साधारण कपड़ों में थे। मिस्टर शर्मा ने साधारण सा कुर्ता पजामा पहना हुआ था। और मिसेज शर्मा भी साधारण सी साड़ी और सादे तरीके से बाल बांधे हुए थी। 

 एक साइड में खड़े दोनों ही लोग सबसे अलग दिखाई दे रहे थे। दोनों पति-पत्नी ने एक दूसरे की आंखों में देखा और कुछ बोले नहीं। शायद विवेक के घर का नजारा देख लेने के बाद कुछ कहने की जरूरत ही नहीं बची थी। बिना बोले ही बहुत कुछ कह रही थी उनकी आंखे। 

 जो बेटा बचपन में कभी पापा की उंगली नहीं छोड़ना चाहता था। शायद आज उसे उसी पिता की उंगली को पकड़ने में शर्म महसूस हो रही थी। इससे पहले कि कोई उन्हें वहां देखता। वे दोनों वहां से चुपचाप चले गए। 

रात का समय था। सुनसान सड़क पर दोनों चले जा रहे थे। अनजानी मंजिल की तलाश में। घर से बहुत दूर निकल जाने के बाद सड़क के किनारे एक बेंच पर थक कर बैठ गए। उम्र के इस पड़ाव पर आकर बगल में रखा हुआ केक का डब्बा मानो उनका उपहास कर रहा हो। 

Moral :- हमारी समझ में,  हम सिर्फ पैसा और कमाई को ही कैरियर मान बैठे हैं। यही कारण है कि बच्चे अपना फर्ज भूल जा रहे हैं। मां-बाप ने अपना कर्तव्य रूपी कर्म बखूबी निभाया।  तो आखिर क्यों बच्चे अपने मां-पापा से इस तरह का व्यवहार करते हैं।  ऐसा समय तो उनके साथ भी आएगा।  जब उनके बच्चे ऐसा व्यवहार करेंगे तब उनका क्या होगा।  

वर्तमान का यह कटु सत्य है। 

 जिस तरह मां-बाप ने अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा किया और तकलीफों से बचाया।  उसी तरह अब बच्चों का कर्तव्य है कि वह माता-पिता के ऋण को चुकाऐ। 

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